April 19, 2024

आखिर क्या है विषकन्या का इतिहास ?

वैदिक साहित्य में विष कन्याओं का उल्लेख मिलता है। विषकन्या जासूसी के कार्य किया करती थीं। वैदिक ग्रंथों को आधार मानें तो विष कन्या का प्रयोग राजा अपने शत्रु का छल पूर्वक अंत करने के लिए भी किया करते थे।

वह रूपवती होतीं थीं जिन्हें बचपन से ही विष की अल्प मात्रा देकर बड़ा किया जाता था और विषैले वृक्ष तथा विषैले प्राणियों के संपर्क से उसको अभ्यस्त किया जाता था। इसके अतिरिक्त उसको संगीत और नृत्य की भी शिक्षा दी जाती थी। विषकन्या का श्वास विषमय होता था।

बारहवीं शताब्दी में रचित ‘कथासरितसागर’ में विष-कन्या के अस्तिव का प्रमाण मिलता है। सातवीं सदी के नाटक ‘मुद्राराक्षस’ में भी विषकन्या का वर्णन है, ‘शुभवाहुउत्तरी कथा’ नामक संस्कृत ग्रंथ की राजकन्या कामसुंदरी भी एक विषकन्या थी।

16वीं सदी में गुजरात का सुल्तान महमूद शाह था। उस समय के एक यात्री भारथेमा ने लिखा है कि, महमूद के पिता ने कम उम्र से ही उसे विष खिलाना शुरू कर दिया था ताकि शत्रु उस पर विष का प्रयोग कर उस पर नुकसान न पहुंचा सके। वह कई तरह के विषों का सेवन करता था। वह पान चबा कर उसकी पीक किसी व्यक्ति के शरीर पर फेंक देता था तो उस व्यक्ति की मृत्यु सुनिश्चित ही हो जाती थी?

उसी समय का एक अन्य यात्री वारवोसा लिखता है कि, सुल्तान महमूद के साथ रहने वाली युवती की मृत्यु निश्चित थी। इतिहास में दूसरे विष पुरुष के रूप में नादिरशाह का नाम आता है। कहते हैं उसके श्वास में ही विष था। विषकन्याओं की तरह विषपुरुष इतने प्रसिद्ध नहीं हुए।