March 28, 2024

Editorial

ओजन परत में छेद होने से परेशान हैं पर्यावरणविद

खेती में पानी से हरियाली, जवानी में खुशहाली आती है, यही जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन और उन्मूलन है। व्यवस्था में छेद होने से पहले हमारे में छुद्रता आती है और यह छुद्रता यदि वैचारिक हो तो इसका अर्थ यह है कि, हमारे पतन की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। यह सुलगती सच्चाई है औैर इस […]

अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस युवाओं का दिन…

बढ़ती बेरोजगारी होना चाहिए चिंता का विषय युवा किसी भी देश की तरक्की और विकास में अहम भागीदारी निभाता है। इसमें कोई दोहराई नही है क्योंकि जो विजन, काम करने की शक्ति और कुछ नया करने का जज्बा युवाओं के पास है। वो किसी के पास नही हो सकता आज का दिन युवाओं का दिन […]

राजनीति अर्थात राज करने के लिए जो नीतियां अपनाई जाए वही तो है राजनीति

राजनीति में केवल आज राजनीतिक लोग केवल अपनी आकांक्षाओं और अपनी प्रबल इच्छाओं को पूरा करने के लिए दिन-रात प्रयासरत हैं। चुनावों के दौरान जनता के बीच में किए चुनावी वायदे जीतने के बाद हवा हवाई हो जाते हैं और जनता को उनके हालात पर छोड़ दिया जाता है। देश और समाज के लिए कुछ […]

भाग -2 : लोकतंत्र कैसे मरता है, पढ़िए

उपरोक्त शीर्षक से संबंधित लेख के दूसरे भाग का आरंभ हम, How Democracies Die, पुस्तक के लेखकों के संक्षिप्त परिचय से करना चाहेंगे। जनवरी 17,1968 में जन्में स्टिवन लेवितस्की अमेरिका के राजनीतिक वैज्ञानिक और हार्वड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। तुलनात्मक राजनीतिक वैज्ञानिक- अनुसंधान क्षेत्र के साथ-साथ लेटिन अमेरिका और राजनैतिक पार्टियों और जिसमें पार्टी स्सिटम […]

भाग-1 : लोकतंत्र कैसे मरता है?

आज कमोबेश समूचे विश्व में लोकतांत्रिक राज-व्यवस्थाओं को बचाने के प्रयास बड़ी शिद्दत से चल रहे हैं, और इस बात पर भी गहन विचार-मंथन हो रहा कि विभिन्न देशों में डेमोक्रेसी कैसे समाप्त हो रही है ? ऐसे में हमें भी अपने देश में चल रही मौजूदा दौर की राजनैतिक -प्रवृति को समझना चाहिए या […]

हिंदी पत्रकारिता जनता और सरकार के बीच सेतु

30 मई ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ देश के लिए एक गौरव का दिन है। आज विश्व में हिंदी के बढ़ते वर्चस्व व सम्मान में हिंदी पत्रकारिता का विशेष योगदान है। हिंदी पत्रकारिता की एक ऐतिहासिक व स्वर्णिम यात्रा रही है जिसमें संघर्ष, कई पड़ाव व सफलताएं भी शामिल है। स्वतंत्रता संग्राम या उसके बाद के उभरते नये भारत की […]

भाग- 3 : गोलवालकर का हिन्दू राष्ट्र व राष्ट्रीयता

GOLWALKAR’S, WE OR OUR NATIONHOO DEFINED ( 3rd Revised Edition). A Critique by SHAMSUL ISLAM.उपरोक्त पुस्तक व अन्य पुस्तकों व ग्रंथों के अध्ययन की सहायता से हम ‘गोलवाकर का हिन्दू राष्ट्र व राष्ट्रीयता शीर्षक को लेकर श्रृखंला बद्ध आलेखों की कड़ी में हम तीसरे प्रकरण की शुरुआत करने जा रहे हैं। जहां तक एम.एस.गोलवालकर [GOLWALKAR’S, […]

भाग-2 : गोलवालकर का हिन्दू राष्ट्र व राष्ट्रीयता

  हम उपरोक्त शीर्षक वाले आलेख के पहले प्रकरण में लिख चुके हैं कि आर.एस.एस. ने एम.एस. गोलवालकर को 20 वीं सदी का भारत माता का योग्य सपूत और हिन्दू समाज के लिए उत्कृष्ट उपहार के रूप में माना है। वहीं हम अपने पाठकों को यह भी बताना चाहते हैं कि ‘गोलवाकर का हिन्दू राष्ट्र […]

भाग-1 : गोलवालकर का हिन्दू राष्ट्र व राष्ट्रीयता

निसंदेह भारत के पुनरुत्थान के लिए राष्ट्रीय सेवक संघ (आर.एस.एस) द्वारा, एम.एस. गोलवालकर को एक पैंगबर कहें या संत या फिर भविष्यवक्ता के रूप में स्थापित करने का भरसक प्रयास किया गया है। वहीं आर.एस.एस. ने इन्हें 20वीं सदी का भारत माता का योग्य सपूत और हिन्दू समाज के लिए उत्कृष्ट उपहार के रूप में […]

भारत में कोविड-19 से जंग: बेरोजगारी और भूखमरी का कौन ढूंढेगा हल

प्रभु रथ रोकोक्या प्रलय की तैयारी हैबिना शस्त्र का युद्ध है जो,महाभारत से भी भारी है।कितने परिचित कितने अपने,आखिर यूं चले गएजिन हाथों में घन-संबलसब काल से छले गए ….विख्यात साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर जी की उपरोक्त पंक्तियां आज भी कितनी सार्थक व संदर्भित प्रतीत हो रहीं हैं! हालांकि दिनकर जी आज दुनिया से गए […]