April 25, 2024

नैतिकता का ढोल और ऐसा शर्मनाक विज्ञापन नहीं होगा हजम

लेकिन क्या करे मीडिया को शर्म आती नही…

Poonam Chauhan/Alive News : समाज को आईना दिखाने वाले ही जब समाज को गुमराह करने का कार्य शुरू करे या फिर ये कहा जाए कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाने वाला मीडिया ग्रुप ही जब अपनी मानमर्यादा को दरकिनार कर विज्ञापन के प्रलोभन में जब समाज में अश£ीलता परोसने का कार्य शुरू कर दे तो बाकियों से क्या उम्मीद की जा सकती है। विज्ञापनों से मिलने वाली धनराशि के लिए आज देश के नामचीन मीडिया ग्रुप कुछ भी परोसने को तैयार बैठे हैं। उन्हे समाज या फिर लोगों की मानसिकता पर इन विज्ञापनों का क्या प्रभाव पड़ेगा उससे कुछ भी लेना देना नही है।

आज देश के 5 बड़े मीडिया गु्रप विज्ञापन के लिए कितने नीचे गिर गए है इसका अंदाजा समाचार-पत्र में प्रकाशित होने वाले इस तरह के विज्ञापनों को देखकर लगाया जा सकता है। यह फोटो एक निजी मीडिया ग्रुप समूह में छपी क्लासीफाइड विज्ञापन एड का है। जोकि कई दिनों से लगातार छप रहा है, कोई भी पाठक आसानी से समझ सकता है कि यह विज्ञापन कैसी सर्विस की बात करता है। जो मीडिया घराने दिन-रात नैतिकता का ढ़ोल पीट रहे हैं वो महज चंद रुपए के लिए देखिए किस हद तक गिर जाते हैं। देश के किसी भी छोटे-बड़े शहर में अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए दिन रात जद्दोजहद करने वाले लोगों के मुंह पर थूकने जैसा है।

जब इस विज्ञापन में लिखा जाता है कि हर रोज मीटिंग करके 10 से 12 हजार रुपए कमाएं। फिर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को इस पर गौर करना चाहिए। इतनी आसानी से बेरोजगारी दूर हो सकती है। इस देश की अदालतों को ऐसे मामलों पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। जहां सुप्रीम अदालत के मुखिया अहमक तथाकथित स्वामी ओम की अपील पर घंटा-दो घंटा बर्बाद कर रहे हैं, ऐसे में इन पर भी उनकी नजर पडऩी चाहिए।

इतना तो तय है कि इस समूह के बड़े अधिकारियों की अनुमति के बिना ऐसे विज्ञापन तो छपते नहीं होंगे और इस पर नजर पडऩे के बाद उनको भी इस पेशे में आना चाहिए क्योंकि जितने पैसे कमाने की बात इस विज्ञापन में कही जा रही है उतनी तो उनकी तनख्वाह भी नहीं होगी। आखिर महीने के तीन-साढ़े तीन लाख की सैलेरी देश में कितनों को मयस्सर है हमें मालूम ही है। लेकिन क्या करें मीडिया ग्रुपों को शर्म है कि आती नहीं।

– यह हम सब की सामाजिक जिम्मेवारी है कि समाज में हम अपने सरोकारों को समझें, तथा लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में मीडिया अपनी विश्वसनीयता को कायम रखें।
दीपक शर्मा, प्रधान, हरियाणा यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, फरीदाबाद।


– हमारी जिम्मेवारी बनती है कि हम कुछ भी ऐसा समाज में ना परोसे, पैसे के लिए समाज और लोगों की मानसिकता को ठेस नहीं पहुंचा सकते है। अपने पर्सनल फायदे के लिए समाज में गलत सन्देश देने से बचना चाहिए।
नन्दराम पाहिल, प्रेसिडेंट, यूनाइटेड प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन।