April 18, 2024

कैसे करे चार साल के बच्चे की काउंसिलिंग?

New Delhi/Alive News : दिल्ली में रहने वाली एक महिला ने बीते साल नवंबर में आरोप लगाया था कि उनकी चार साल की बच्ची के साथ स्कूल में यौन हिंसा हुई थी। अब दिल्ली पुलिस ने इस पूरे मामले में चार्जशीट दायर कर दी है। दिल्ली पुलिस के डीसीपी शिबेश सिंह के मुताबिक चार्जशीट में उस प्राइवेट स्कूल के खिलाफ मामला दर्ज किया है, जिसमें बच्ची पढ़ती थी। पुलिस की चार्जशीट में स्कूल की लापरवाही का मामला सामने आया है। चार्जशीट में पोक्सो एक्ट और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट लगाया गया है। लेकिन अब सवाल उठता है कि चार साल के बच्चे की काउंसिलिंग कैसे की जाए?

यही सवाल मीडिया ने बच्चों के खिलाफ अपराध पर ‘बिटर चॉकलेट’ नाम की किताब लिखने वाली लेखिका पिंकी विरानी से पूछा। उनके मुताबिक, ये बात सिर्फ काउंसिलिंग या फिर पोक्सो कानून तक सिमित नहीं है। इसमें काउंसिलर से ज्यादा अहम रोल माता-पिता का है।

पिंकी आगे कहती हैं, बच्चों को गुड टच और बैड टच समझा कर माता पिता अपना पल्ला नहीं छुड़ा सकते। उनके मुताबिक बहुत मुमकिन है कि बच्चे को किसी ने पॉर्नोग्रफिक वीडियो दिखाया हो या फिर घर पर माता पिता के साथ बैठ कर टीवी पर निर्भया कांड पर सिलसिलेवार रिपोर्ट देख सुन रहा हो। ये भी हो सकता है कि इस तरह की बात सुनने और देखने के बाद उसने इसे खुद आजमाने की बात सोची हो। इसलिए बार-बार माता-पिता को गुड टच बैड टच दोहराने की जरूरत है। यही बात चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट प्राची चित्रे भी दोहराती हैं. प्राची के मुताबिक, सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि चार साल के बच्चे को यौन हिंसा के आरोपी की तरह न देंखे। बहुत मुमकिन है कि उसने ये सब सुना हो, देखा हो और फिर बाद में आजमाना चाहा हो।

प्राची कहती हैं चार साल के उम्र में बच्चे का सेक्स ज्ञान इतना नहीं होता कि वो यौन हिंसा कर सके। ट्रेन्ड काउंसिलर तो इस बात को समझा सकता है, लेकिन माता पिता और आस पड़ोस के बच्चे को इसे समझाना ज़्यादा ज़रूरी है। प्राची आगे बताती है कि चार साल के बच्चे को समझाना मुश्किल ज़रूर है पर नामुमकिन नहीं है, बस कुछ ज़रूरी बातों का ख्याल रखें।

– गुड टच बैड टच के बारे में बात करें ये जरूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है उस बात को कुछ दिनों के अंतराल में बार बार दोहराना। मसलन बच्चे को नहलाते हुए, किसी नंगे बच्चे को घर में घूमते हुए देख कर, ऐसे समय पर बात दोहराने पर बच्चे पर इसका ज्यादा असर पड़ता है।
– दूसरी अहम बात है, बच्चे को बॉडी बाउंडरी बताना. बॉडी बाउंडरी का अर्थ है कितनी दूरी से कोई किसी को नहीं छू सकता। कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चों की प्राइवेट पार्ट की लोग तस्वीर लेने की कोशिश करते हैं, कहीं भी किसी के सामने कपड़े बदलने को कहते हैं, ये सब भी गलत है ये बात भी बच्चे को बताना जरूरी है, इसमें सबसे अहम भूमिका माता पिता की होती है।
– इतना ही नहीं, जब आप बच्चे को ये बताएं कि आपको कोई गलत तरीके से छूएं तो मम्मी को बताओ, उसी समय ये बताना भी जरूरी है कि आप भी किसी को गलत तरीके से गलत जगह पर न छूएं, अक़सर माता-पिता यही बात बताने में चूक जाते है।
– बच्चों को ये बताना जरूरी है कि अगर कोई प्राइवेट पार्ट टच करता है तो जरूरी नहीं की अहसास बुरा ही हो, कभी कभी ऐसे मामलों में बच्चों को सुखद अनुभूति या गुदगुदी भी हो सकती है।
– सबसे अहम बात ये कि जब माता-पिता बच्चे से गुड टच बैड टच बताएं तो बॉडी पार्ट की सही टर्मिनलॉजी का इस्तेमाल करें, जैसे आप अगर आंख नाक मुंह के बारे में बेझिझक बात करते हैं तो बच्चों को पेनिस और वेजाइना के बारे में भी सही सही बताएं, केवल बॉटम कह कर उसे संबोधित न करें।
– कई बार परिवार में भी बच्चे इस तरह के यौन हिंसा का शिकार हो सकते हैं, ऐसे में जरूरी है कि बच्चे के साथ आप इन परेशानियों के लिए एक सीक्रेट कोड बना लें ताकि परिवार के बड़े के सामने ऐसा कुछ होने पर बताने में बच्चा न झिझके।

बच्चे की काउंसिलिंग
दिल्ली के प्राइवेट स्कूल में जिस बच्ची के साथ ऐसा हुआ, उसकी मां से मीडिया ने बात की। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया की पूरे मामले के बाद जिस बच्चे पर आरोप है, उनके माता पिता ने कभी उनसे बात तक नहीं की। उस बच्चे की काउंसिलिंग हुई हो ये बता तो दूर की है। उनका आरोप है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए जो गाइडलाइन है वो भी स्कूल में मौजूद नहीं है।

स्कूलों में सुरक्षा पर सीबीएसई के दिशा निर्देश
केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने सितंबर 2017 में स्कूलों में छात्रों की सुरक्षा को लेकर गाइडलाइन जारी किए थे, जिसके मुताबिक

– स्कूल में सीसीटीवी कैमरे होने चाहिए जो हर वक्त काम कर रहें हो।
– स्कूल में काम करने वाले शिक्षकों और दूसरे नॉन टीचिंग स्टॉफ का भी पुलिस वेरिफिकेशन हो।
– स्कूल में काम करने वाले सभी स्टॉफ का साइकोमेट्रिक इवेलुएशन होना जरूरी है, ताकि उनकी मानसिक स्थिति का पता लगाया जा सके।
– स्कूल के सपोर्टिंग स्टॉफ रजिस्टर्ड एजेंसी से ही भर्ती किए जाएं।
– किसी भी तरह की हिंसा से निपटने के लिए स्कूल के स्टॉफ को समय-समय पर ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।
– स्कूल में पोक्सो और सेक्शुअल हैरेसमेंट की कमेटी अलग-अलग कमेटी होनी चाहिए। कमेटी के सदस्यों के नाम स्कूल के नोटिस बोर्ड और वेबसाइट पर होना चाहिए।
– सुरक्षा ऑडिट निश्चित समय के अंतराल पर हो ये स्कूल की जिम्मेदारी है।

प्राइवेट स्कूल प्रशासन का जवाब
स्कूल के लीगल एडवाइजर एस राजप्पा ने बताया कि जब बच्चे ने ऐसा कुछ किया ही नहीं तो काउंसिलिंग की बात कहां से आती है। उनके मुताबिक हमने पीडि़त बच्चे की माता और बच्चे दोनों को स्कूल बुलाया था, लेकिन दोनों नहीं आए। सीबीएसई की गाइडलाइन में बच्चों की सुरक्षा के जितने नियम हैं उन सभी का पालन स्कूल में हो रहा है। मामला कोर्ट में आएगा तो स्कूल प्रशासन उचित जवाब देगा।