April 25, 2024

जानिए क्यों JNU के छात्रों को मज़बूरी में सड़क पर उतरना पड़ा

अब सवाल है कि आखिर JNU के छात्रों को सड़क पर क्यों उतरना पड़ा और सिर्फ JNU ही नहीं बल्कि टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (TISS) के बच्चे भी आंदोलन कर रहे हैं। दरअसल जबसे वर्तमान केन्द्र सरकार सत्ता में आई है, तभी से JNU सहित कई विश्वविद्यालय सरकारी नीतियों के निशाने पर हैं। 

New Delhi/Alive News : बीते शुक्रवार को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के हज़ारों हज़ार छात्र सड़क पर दिखें। उन्होंने JNU से संसद मार्ग तक पैदल लॉन्ग मार्च का आह्वान किया। हालांकि दिल्ली पुलिस ने उन्हें बीच रास्ते में ही रोक दिया और उन निहत्थे, अहिंसक प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया गया, लड़कियों के कपड़े खींचे गए, उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया गया।

अब सवाल है कि आखिर JNU के छात्रों को सड़क पर क्यों उतरना पड़ा और सिर्फ JNU ही नहीं बल्कि टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (TISS) के बच्चे भी आंदोलन कर रहे हैं। दरअसल जबसे वर्तमान केन्द्र सरकार सत्ता में आई है, तभी से JNU सहित कई विश्वविद्यालय सरकारी नीतियों के निशाने पर हैं। सरकार एक के बाद एक ऐसी नीतियां ला रही हैं जिससे आने वाले समय में जहां सार्वजनिक शिक्षा मंहगी हो जायेगी, वहीं पिछड़े वर्ग से आने वाले छात्र-छात्राओं के लिये उच्च शिक्षा पहुंच से बाहर हो जायेगी।

नये-नये नियम लाकर सरकार यह तय करना चाह रही है कि देश के शोषित-गरीब तबके के लोग अपने बच्चों के लिये उच्च शिक्षा का सपना ही नहीं देख पायें। आइये जानते हैं कि आखिर किन वजहों से जेएनयू के छात्रों को सड़क पर उतरने को मजबूर होना पड़ा।

स्वायतत्ता का मुद्दा
अभी सरकार ने विश्वविद्यालय को स्वायत्त संस्थान घोषित करने का निर्णय लिया है, जिसका मतलब है कुलपति को अपनी मनमर्ज़ी करने की खुली छूट। इस छूट के सहारे विश्वविद्यालय के कुलपति कई संवैधानिक दायरे से भी बाहर हो जायेंगे जैसे कि कमज़ोर वर्गों के लिये प्रावधानों को समाप्त करने, शिक्षा के निजीकरण, मनमर्ज़ी से फीस बढ़ाने जैसे कदम उठाये जाने की शंका है।

30-70 फंडिंग फॉर्मूला
जहां देश में सरकार लगातार आम जनता पर अनाप-शनाप कर बढ़ा रही है। किसान कर्ज़ में डूबकर आत्महत्या कर रहे हैं, बड़े-बड़े उद्योगपतियों को आम जनता के लाखों करोड़ रुपये माफ कर दिये जा रहे हैं, उद्योगपतियों को बैंक लूट कर भागने की खूली छूट दे दी गयी है। वहीं दूसरी तरफ सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे आम जनता के मुद्दे पर बजट की कटौती कर रही है। कई स्कॉलरशिप और फेलोशिप को कम कर दिया गया है, साइंस से लेकर आर्ट्स तक के बड़े-बड़े संस्थानों को खुद से फंड जुटाने को कहा जा रहा है।

सरकार 30-70 का फॉर्मूला लेकर आयी है, जिसके तहत वह विश्वविद्यालय से 30 प्रतिशत फंड खुद जुटाने को कह रही है। इसका सीधा मतलब होगा कि विश्वविद्यालय अपने कोर्स की फीस बढ़ायेंगे, जिसका असर समाज के गरीब और मध्यम वर्ग के छात्र-छात्राओं पर होगा। ऐसे में एक मजदूर, एक रिक्शावाला या फिर कम पैसे में काम करने वाला क्लर्क अपने बच्चों के लिये उच्च शिक्षा का सपना कैसे देख पायेगा?

सीट-कट
जबसे वर्तमान भाजपा सरकार सत्ता में आयी है, तबसे विश्वविद्यालयों में सीट में कमी की जा रही है। अकेले JNU में रिसर्च प्रोग्राम जैसे एमफील, पीएचडी में दो सालों में 80 प्रतिशत सीटें खत्म कर दी गयी। सरकार तर्क दे रही है कि उनके पास पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं इसलिए वे बच्चों का एडमिशन नहीं ले सकती हैं। सरकार का यह तर्क ऐसा ही है जैसे किसी कैंसर मरीज़ को इलाज की जगह उसका शरीर का वह भाग ही काट दिया जाये। सरकार को चाहिये था कि वह नये शिक्षकों की बहाली करे, लेकिन इस सरकार में दूसरी सरकारी नौकरियों की तरह ही नयी नौकरियों को लगभग बंद कर दिया गया है। ऐसे में सबसे ज़्यादा प्रभावित कमज़ोर और निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे ही हो रहे हैं, जिन्हें न तो सरकारी कॉलेज में एडमिशन मिल पा रहा है और न ही सरकारी नौकरियों में कोई मौका।

छात्रों में डर का माहौल
अकेले अगर JNU की बात करें तो आप देखेंगे कि देश का बेस्ट रिसर्च इसी विश्वविद्यालय में किया जाता है। NAAC संस्था जो विश्वविद्यालय के स्तर की रैंकिग करती है, पिछले तीन सालों से उसमें JNU का स्थान पहला है। अभी हाल ही में JNU को राष्ट्रपति के द्वारा भी सम्मानित किया गया है। लेकिन पिछले सालों में यहां के छात्रों में लगातार डर का माहौल बनाया गया है। कभी छात्रों पर पुलिस का कार्रवाई गयी है, कभी उन्हें नोटिस भेजकर परेशान किया गया है तो कभी मोरल पोलिसिंग करने की कोशिश की गयी है।

इन सब वजहों से छात्रों के बीच निराशा, दुख और गुस्सा जमा हो गया है, लेकिन वे इस अंधेरे से थककर चुप नहीं बैठे हैं, बल्कि उजाले की तरफ बढ़ रहे हैं, अपने संघर्ष को सड़कों पर पहुंचा रहे हैं। हज़ारों-हज़ार छात्रों का सड़क पर निकला हुजूम हमारे लोकतंत्र पर विश्वास को मज़बूत करता है। अभी हम देश के आम लोगों को ज़रूरत है कि वे अपना समर्थन अपने देश की शिक्षा को बचाने के लिये दें, अपने देश के युवा बचेंगे तभी देश बचेगा।