April 27, 2024

स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन

Faridabad/Alive News : राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सराय ख्वाजा की जूनियर रेड क्रॉस और संत जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड ने प्राचार्या नीलम कौशिक की अध्यक्षता और इंग्लिश प्रवक्ता रविंदर कुमार मनचंदा के नेतृत्व में स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन किया।

रविंदर कुमार मनचंदा ने बताया कि स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म एक हिंदु धर्म के नेता के रूप में हुआ, वे आर्य समाज के संस्थापक थे. हिन्दुओ में वैदिक परंपरा को मुख्य स्थान दिलवाने के अभियान में उनका मुख्य हाथ था. वे वैदिक विद्या और संस्कृत भाषा के विद्वान थे, वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने स्वराज्य की लड़ाई शुरू की जिसे 1876 में भारतीयों का भारत नाम दिया गया, जो बाद में लोकमान्य तिलक ने अपनाया.

उस समय हिन्दुओ में मूर्ति पूजा काफी प्रचलित थी, इसलिए वे उस समय वैदिक परंपरा को पुनर्स्थापित करना चाहते थे.परिणामस्वरूप महान विचारवंत और भारत के राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन ने उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता कहा, जैसा की उन्होंने अरबिन्दो को कहा था जिनपर दयानंद का बहुत प्रभाव पड़ा, और उनके अनुयायियों की सूचि में पंडित लेख राम, स्वामी श्रद्धानंद, पंडित गुरु दत्त विद्यार्थी, श्याम कृष्णन वर्मा, जिन्होंने इंग्लैंड में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का घर निर्मित किया था, लाला हरदयाल, मदन लाल धींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल ,लाला लाजपत रॉय, महादेव गोविन्द, महात्मा हंसराज और कई लोग शामिल थे।

दयानंद सरस्वती द्वारा किया गया सबसे प्रभावी कार्य मतलब ही उनकी किताब “सत्यार्थ प्रकाश” थी. जिसमे भारतीय स्वतंत्रता की नीव रखी गयी. वे लकड़पन से ही सन्यासी और विद्वान थे, जो वेदों की अपतनशील शक्तियों पर भरोसा रखते थे। महर्षि दयानंद कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत के अधिवक्ता थे.

वे वैदिक क्रिया जैसे ब्रह्मचर्यं और भगवान की भक्ति पर ज्यादा ध्यान देते थे. अध्यात्म विद्या विषयक समाज और आर्य समाज को 1878 से 1882 तक एकजुट किया गया. जो बाद में आर्य समाज का ही भाग बना। महर्षि दयानंद के महान कार्यो में महिलायों के हक्को के लिए लड़ना भी शामिल है. महिलाओ के हक्क जैसे- पढाई करने का अधिकार, वैदिक संस्कृति पढने का अधिकार इन सब पर उन्होंने उस समय ज्यादा जोर दिया, ताकि सभी लोग हिंदु संस्कृति को अच्छी तरह से जान सके. दयानंद वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दलितों को स्वदेशी और हरिजन अजिसे नाम दिए और महात्मा गाँधी से भी पहले अछूत परंपरा को दूर किया था।

भारतीय स्वतंत्रता के अभियान में महर्षि दयानंद सरस्वती का बहोत बड़ा हात था. उन्होंने अपने जीवन में कई तरह के समाज सुधारक काम किये. और साथ ही लोगो को स्वतंत्रता पाने के लिए प्रेरित भी किया। इस अवसर पर संजय मिश्रा ने भी महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन से परिच करवाया। प्राचार्या नीलम कौशिक, रविंदर कुमार मनचंदा, मौलिक मुख्याध्यापक ईश कुमार , ब्रह्मदेव यादव, अधिवक्ता नरेंदर कुमार, संजय मिश्रा, बिजेन्दर सिंह और सुनील पराशर ने महर्षि दयानंद सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण किया और और उन के सिद्धांतों पर चलने की सीख दी।

प्राचार्या नीलम कौशिक ने कहा की आर्य समाज को स्थापित कर के उन्होंने भारत में डूब चुकी वैदिक परम्पराओ को पुनर्स्थापित किया और विश्व को हिंदु धर्म की पहचान करवाई. उनके बाद कई स्वतंत्रता सेनानियों ने उनके काम को आगे बढाया. और आज ऐसे ही महापुरुषों की वजह से हम स्वतंत्र भारत में रह रहे है.