April 27, 2024

अंधेरे में प्रेक्टिस को मजबूर खिलाड़ी, फिर भी चाहत मेडल की

खेल परिसर के सुरक्षा इंतजाम की खुली पोल

Poonam Chauhan/Alive News : मैडम, कहां करे अभ्यास, नही दिखती है कोई आस ये हम नहीं बल्कि, जिला खेल परिसर में खेलों का अभ्यास करने वाले खिलाड़ी जिला खेल अधिकारी से पूछ रहे हैं। जिले के खिलाड़ी जिनके पास खेलो का अभ्यास करने के लिए स्टेडियम तो है पर सुविधाएं नहीं। जरा खिलाडिय़ों की मजबूरी तो देखिए जिनके पास ना तो स्टेडियम में लाईट की सुविधा है ना ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम। ऐसे में खिलाड़ी अभ्यास करें भी तो कैसे।

ऐसा नहीं है कि स्टेडियम में लाईट की फेस्लिटी मौजूद नहीं है, लाईट तो है पर अधिकारियों की लापरवाही और देखरेख के अभाव में खराब हो चुकी है। अलाईव न्यूज की टीम ने जब मौके पर जाकर सुविधाओं का जायजा लिया तो सुबह के करीब 4:30 बजे पूरे स्टेडियम में मात्र एक ही लाईट जलती मिली, जिसकी रोशनी पूरे स्टेडियम के लिए प्रयाप्त नहीं थी। ऐसा लग रहा था मानो कोई अंधेरी रात में दीया लेकर खड़ा हो। ऐसे में बेचारे जिले के भविष्य स्टार खिलाड़ी कैसे प्रेक्टिस करेंगे यह तो अधिकारी ही बता सकते है।

पूरे स्टेडियम में नाम के लिए 6 से 7 लाईट लगी हुई है लेकिन इनमें से मात्र एक-दो ही ठीक स्थिति में बची हैं। लाईट के नाम पर स्टेडियम में केवल लोहे के खम्भे ही खड़े रह गए है। आलम यह है कि सुबह रेस्लिंग की प्रेक्टिस करने आने वाले खिलाडिय़ों को अंधेरे में ही प्रेक्टिस करनी पड़ रही है, इतना ही नहीं सुबह के समय स्टेडियम में न तो कोई भी सुरक्षा कर्मी ही मौजूद रहता है ना ही गेट पर कोई गार्ड।

अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन की जिम्मेदारी सिर्फ खिलाडिय़ों को स्टेडियम उपलब्ध कराने तक ही रह जाती या फिर उन्हें बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने की भी है। स्टेडियम में सुबह रेस्लिंग के बच्चे और साथ ही दौड़ के बच्चे होते है जिनमें कुछ लड़कियां भी होती है, इसके बावजूद भी सुबह के समय ना तो सुरक्षाकर्मी ही होता है ना ही कोई गार्ड, ऐसे में खिलाड़ी डर और भय के सांये में अभ्यास करने को मजबूर हैं।

क्या कहते है अभिभावक
खिलाडिय़ों के अभिभावक शिव कुमार, फूल कुमार, संतोष भारद्वाज, टीना उज्जीनवाल और शशि डांगी ने संयुक्त रूप से बताया कि रेस्लिंग के बच्चे सुबह 4:30 बजे स्टेडियम में प्रेक्टिस करने आते है। उस समय ना तो यहां कोई सुरक्षा कर्मी होता है ना ही लाईटे जली होती है। जिससे बच्चों की सुरक्षा को लेकर उनके दिल में डर बना रहता है कि कहीं कोई अनहोनी ना हो जाए। इसलिए हमें बच्चों के साथ आना पड़ता है।